महिलाओं पर पड़ने वाला बोझ
महिलाओं पर पड़ने वाला बोझ
संदर्भ: भारत भर में 75% महिलाओं को अपने परिवारों के लिए ‘पानी’ सुनिश्चित करने को हर दिन ‘अत्यधिक समय लेने वाले प्रयास’ करने पड़ते हैं। पांचवें ‘राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण’ (NFHS-5) में इसे ‘घरेलू कठिन श्रम’ (Domestic Drudgery) के रूप में संदर्भित किया गया है।
घरेलू कठिन श्रम:
- यह नौकरों जैसी, अरुचिकर, या कड़ी मेहनत को संदर्भित करता है।
- कठोर श्रम, महिलाओं को कम उम्र से ही प्रभावित करता है।
घरेलू कड़े श्रम के परिणाम:
- थकावट।
- पेशी-कंकालीय विकार (Musculoskeletal disorders)।
- प्रतिरक्षा में कमी।
- उच्च मानसिक तनाव।
- महिलाओं की ‘दैहिक सुरक्षा’ के लिए खतरनाक।
- बच्चों के संज्ञानात्मक विकास और शिक्षा के स्तर को प्रभावित करने में सक्षम।
सामने आने वाली समस्याएं:
- राष्ट्रीय महिला आयोग की रिपोर्ट, 2005: लंबी कतारें और पानी की खराब गुणवत्ता और पानी इकट्ठा करने में चार-पांच घंटे का नुकसान।
- ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद की रिपोर्ट 2021: गैस भरने में कठिनाइयाँ और कीमतें बढ़ाना।
- ग्रामीण भारत में 52% महिलाएं जलाऊ लकड़ी का उपयोग करती हैं।
सरकारी हस्तक्षेप महिलाओं को ‘घरेलू कठिन श्रम’ से किस प्रकार बचा सकते हैं:
- बनासकांठा, गुजरात में शोधकर्ताओं ने पाया, कि जब सूक्ष्म उद्यमों के माध्यम से घर के अंदर पाइप से पानी की आपूर्ति के साथ रोजगार के अवसर मिलते हैं, तो जल संग्रह में लगने वाला समय ‘आय अर्जन’ में बदल जाता है।
- प्रधान मंत्री उज्ज्वला योजना: प्रधान मंत्री उज्ज्वला योजना के तहत प्राप्त एलपीजी सिलेंडर ने समय बचाया है और महिलाओं के स्वास्थ्य में सुधार किया है।
निष्कर्ष:
- घरेलू भूमिकाओं का पुनर्गठन: घरेलू भूमिकाओं और जिम्मेदारियों का पुनर्गठन उपयुक्त होगा, जिससे पुरुष भी घर पर समान रूप से योगदान दे सके।
- व्यवस्थित निवेश: अर्ध-सार्वजनिक वस्तुओं के वितरण में ‘निरंतर आर्थिक विकास और बेहतर राज्य क्षमता से प्रेरित’ एक अधिक व्यवस्थित निवेश भी आवश्यक है।